आजादी से पहले के कुछ जन आन्दोलन भाग-II
एक नज़र में:
एक नज़र में:
- पागलपंथी विद्रोह
- फ़राजी विद्रोह(1838-1860 ई.)
- गढ़करी विद्रोह(1844 ई.)
- कोल विद्रोह(1831-1832 ई.)
- यह एक अर्द्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था, जिसे उत्तरी बंगाल के करमशाह ने चलाया था
- करमशाह के पुत्र और उत्तराधिकारी टीपू, धार्मिक व राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित था
- टीपू ने जमींदारों के द्वारा मुजारों(Tenants) पर किये गए अत्याचारों के विरुद्ध आन्दोलन किया
- 1825 ई. में टीपू ने शेरपुर पर अधिकार कर लिया व राजा बन बैठा
- पागलपंथी विद्रोह मुख्यतः गारों का एक विद्रोह था
- सञ्चालन - हाज़ी शरीयतुल्लाह द्वारा
- फ़राजी लोग बंगाल के फरीदपुर के हाज़ी शरीयतुल्लाह द्वारा चलाये गए सम्प्रदाय के अनुयायी थे
- ये लोग धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन चाहते थे
- शरीयतुल्लाह के पुत्र दादू मियाँ ने बंगाल से अंग्रेजों को निकालने की योजना बनायीं
- यह आन्दोलन 1860 ई. तक चलता रहा और अंततः वहाबी आन्दोलन में शामिल हो गया
गढ़करी विद्रोह(1844 ई.) :
- विद्रोह का स्थान - कोल्हापुर, महाराष्ट्र
- 1844 ई. में
- गढ़करी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके वंशानुगत कर्मचारी थे
- उन्होंने मनमाने ढंग से भू-राजस्व की वसूली, मराठा सेना से उन्हें सेवा मुक्त किये जाने व उनकी जमीनों को मामलतदारों की देख-रेख के अधीन कर दिए जाने के विरुद्ध 1844 में कोल्हापुर में विद्रोह कर दिया
- अंग्रेजी सरकार काफी मशक्कत के बाद यह विद्रोह दबा पाई
- विद्रोह का स्थान - छोटा नागपुर क्षेत्र
- नेत्रत्वकर्ता - बुद्धू या बुद्धो भगत और गंगा नारायण द्वारा
- यह विद्रोह रुक-रूककर 1848 ई. तक चलता रहा
- रांची, सिंहभूमि, हजारीबाग, पालामऊ, मानभूमि आदि इसके विद्रोह के क्षेत्र रहे
- ब्रिटिश सरकार द्वारा अन्ततः इसका दमन कर दिया गया
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