आजादी से पहले के कुछ जन आन्दोलन भाग-III
एक नज़र में :
लसोडिया आन्दोलन(19वीं सदी) :एक नज़र में :
- संथाल विद्रोह(1855-56 ई.)
- भील विद्रोह(1812-19 एवं 1825ई.)
- लसोडिया आन्दोलन(19वीं सदी)
- मुंडा विद्रोह(1899-1900ई.)
- संथाल विद्रोह(1855-56 ई.) संथाल जनजाति द्वारा किया गया था
- स्थान - तात्कालीन बिहार व ओडिशा के सिंहभूमि, बांकुरा, मुंगेर, हजारीबाग, भागलपुर जिला
- कारण - उपर्युक्त जिलों में आर्थिक करण हेतु
- नेतृत्वकर्ता - 4 भाई (सिद्धू-कान्हू, चांद और भैरव द्वारा)
- दिकुओं(बाहरी लोग या गैर-आदिवासी लोगों) एवं व्यापारियों ने संथालों द्वारा लिए गए ऋणों पर 50% से लेकर के 500% तक व्याज वसूल किया फिर इन्ही चार भाइयों ने घोषणा की कि ठाकुर जी ने निर्देश दिया है की आजादी के लिए अब हथियार उठा लो
- यह आन्दोलन 1856 ई. तक जारी रहा फिर कमिश्नर ब्राउन व मेजर जनरल लोयड द्वारा इसका दमन
- संथालों ने भागलपुर में मेजर बारो को हराया था
- भीलों की आदिम जाति पश्चिमी तट के खानदेश में रहती थी
- 1812 से 1819 तक इन लोगों ने अपने नए स्वामी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया
- कंपनी का कहना था कि इस विद्रोह को पेशवा बाजीराव-II व उनके प्रतिनिधि त्रयाम्ब्किनी दान्गलिया ने हवा दी है
- विद्रोह का कारण - कृषि सम्बन्धी कष्ट व नई सरकार का भय
- 1825ई. में सेवरम के नेत्रत्व में भीलों का पुनः विद्रोह
- स्थान - महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश
- समय - 19वीं शताब्दी उत्तरार्ध में
- प्रवर्तक - गोविंग गुरु (इन्हें ही लसोडीया कहते थे )
- सुर्जी भगत और गोविन्दगुरु नामक समाज सुधारकों ने राजस्थान के मेवाड़, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़,आदि रियासतों में बसी भील जनजाति में सामाजिक सुधारों के प्रयास किये
- गोविंद गुर द्वारा 1883 ई. में 'सभ्य सभा' का गठन
- समय - 1899-1900ई.
- प्रवर्तक - बिरसा मुंडा
- कार्य क्षेत्र - रांची से लेकर भागलपुर तक (मुख्यतः रांची में )
- विद्रोह का अंत - जून, 1900 ई. में
- मुंडा आदिवासी लोग थे व इनमे सामूहिक खेती का प्रचलन था, लेकिन ठेकेदारों, जागीरदारों, बनिया व सूदखोरों ने सामूहिक खेती की परंपरा पर हमला बोल दिया
- मुंडा सरदार 30 वर्षों तक इसके लिए लड़ते रहे
- इस विद्रोह को 'सरदारी लड़ाई' व 'उल्गुलन विद्रोह' अर्थात महाविद्रोह के नाम से भी जाना जाता है
- कालांतर में यह विद्रोह धार्मिक और राजनीतिक आन्दोलन में बदल गया
- 1895 ई. में बिरसा मुंडा ने अपने आपको 'भगवान् का दूत' घोषित किया व हजारों मुंडाओं का नेता बन बैठा
- 1899 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर बिरसा ने मुंडा जाति का शासन स्थापित करने हेतु विद्रोह किया
- लगभग 6000 मुंडा तीर, तलवार, कुल्हाड़ी लेकर बिरसा के साथ हो लिए लेकिन फ़रवरी, 1900 ई. की शुरुवात में बिरसा गिरफ्तार कर लिए गए
- जून, 1900 में उसकी जेल में मृत्यु
- बिरसा मुंडा को 'जगत पिता' या 'धरती आबा' कहा जाता था
- विद्रोह कुचल दिया गया लेकिन बिरसा मुंडा अमर हो गया
आजादी से पहले के कुछ जन आन्दोलन
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